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कब से था इस इंतज़ार में,
न मुझे न किसी और को हवा हुई !
तेरी एक नज़र काफी थी,
खलबलि फिर से जगा के तू चली गई |
तेरी आँखें ओंझल सी थी और अब भी है,
जो देख के भी अनदेखी रहती है |
कसक है ऐसी मेरे दिल में,
फिर भी फुर्तीला चल रहा हू मैं |
तेरी हर वो मज़ाक, तेरी हर वो हसी,
क्या तु इतनी बेखबर, मुझे कैसे छू जाती !
कभी तेरे आँखों तले बैठता हूँ मैं बस ये सोचे,
फव्वारों के ध्वनि जो अजीब नशा एक लाती,
तू चाहे बादलो में गुम हो जाए जब भी,
आशाये, एक दिन अपना मुझे समझोगे कभी ||
……..My first touch of romanticism with lines in Hindi.